1. श्रीगुरु चरन सरोज रज, निज मनु मुकुरु सुधारि।बरनऊँ रघुवर बिमल जसु, जो दायकु फल चारि॥
अर्थ:
मैं गुरु के चरणों की धूल को अपने मनरूपी दर्पण को स्वच्छ करने का साधन मानता हूँ। मैं श्रीराम के निर्मल यश का वर्णन करता हूँ, जो धर्म, अर्थ, काम और मोक्ष जैसे चारों फल देने वाला है।
2. बुद्धिहीन तनु जानिके, सुमिरौं पवन-कुमार। बल, बुद्धि, विद्या देहु मोहि, हरहु कलेश विकार॥
अर्थ:
मैं खुद को बुद्धिहीन और अशक्त मानते हुए पवनपुत्र हनुमान का स्मरण करता हूँ। मैं प्रार्थना करता हूँ कि हनुमानजी मुझे बल, बुद्धि और विद्या प्रदान करें और मेरे सारे कष्टों और दोषों को दूर करें।