मंगलाचरण (प्रारंभिक दोहे)
1. श्रीगुरु चरन सरोज रज, निज मनु मुकुरु सुधारि।
बरनऊँ रघुवर बिमल जसु, जो दायकु फल चारि॥
अर्थ:
मैं गुरु के चरणों की धूल को अपने मनरूपी दर्पण को स्वच्छ करने का साधन मानता हूँ। मैं श्रीराम के निर्मल यश का वर्णन करता हूँ, जो धर्म, अर्थ, काम और मोक्ष जैसे चारों फल देने वाला है।
2. बुद्धिहीन तनु जानिके, सुमिरौं पवन-कुमार।
बल, बुद्धि, विद्या देहु मोहि, हरहु कलेश विकार॥
अर्थ:
मैं खुद को बुद्धिहीन और अशक्त मानते हुए पवनपुत्र हनुमान का स्मरण करता हूँ। मैं प्रार्थना करता हूँ कि हनुमानजी मुझे बल, बुद्धि और विद्या प्रदान करें और मेरे सारे कष्टों और दोषों को दूर करें।
मुख्य चालीसा
1. जय हनुमान ज्ञान गुन सागर।
जय कपीस तिहुँ लोक उजागर॥
अर्थ:
मैं हनुमानजी की जयकार करता हूँ, जो ज्ञान और गुणों के अनंत सागर हैं। आपकी महिमा तीनों लोकों में प्रकाशित है, और आप मेरे लिए प्रेरणा के स्रोत हैं।
2. रामदूत अतुलित बल धामा।
अंजनि-पुत्र पवनसुत नामा॥
अर्थ:
आप रामजी के दूत और असीम बल के भंडार हैं। मैं आपको अंजनी के पुत्र और पवनदेव के रूप में जानता हूँ। आपकी शक्ति और सेवा-भावना से मैं प्रेरित होता हूँ।
3. महावीर विक्रम बजरंगी।
कुमति निवार सुमति के संगी॥
अर्थ:
हे महावीर! आप बल, पराक्रम और साहस के प्रतीक हैं। आप बुरी सोच (कुमति) को दूर करते हैं और अच्छी सोच (सुमति) के साथ रहते हैं। आपकी यह शक्ति मुझे भी सन्मार्ग पर चलने की प्रेरणा देती है।
4. कनक बरन बिराज सुबेसा।
कानन कुंडल कुंचित केसा॥
अर्थ:
आपका शरीर सोने के समान चमकता है और आपका वस्त्र दिव्यता से परिपूर्ण है। आपके कानों में कुंडल और घुँघराले बाल आपके तेजस्वी स्वरूप को दर्शाते हैं। आपका यह स्वरूप मेरे मन को आकर्षित करता है।
5. हाथ वज्र औ ध्वजा विराजे।
काँधे मूँज जनेऊ साजे॥
अर्थ:
आपके हाथों में वज्र और ध्वजा सुशोभित हैं। आपके कंधे पर पवित्र जनेऊ शोभा देता है। यह पराक्रम और धर्म का संगम आपके व्यक्तित्व का प्रतीक है, जिसे मैं अपने जीवन में अपनाना चाहता हूँ।
6. शंकर स्वय केसरी नंदन।
तेज प्रताप महा जग वंदन॥
अर्थ:
आप भगवान शिव के अंश और केसरी के पुत्र हैं। आपकी अपार शक्ति और प्रताप के कारण पूरा जगत आपकी वंदना करता है। मैं इस शक्ति को अपने जीवन में आत्मसात करने की आकांक्षा रखता हूँ।
7. विद्यावान गुणी अति चातुर।
राम काज करिबे को आतुर॥
अर्थ:
आप विद्वान, गुणवान और अत्यंत चतुर हैं। आप हमेशा श्रीराम के कार्यों को करने के लिए तत्पर रहते हैं। आपकी यह तत्परता और समर्पण मुझे प्रेरित करती है।
8. प्रभु चरित्र सुनिबे को रसिया।
राम लखन सीता मन बसिया॥
अर्थ:
आप श्रीराम के चरित्र को सुनने में रसिक हैं। राम, लक्ष्मण और सीता आपके हृदय में वास करते हैं। यह भक्ति और प्रेम का भाव मुझे भी आपके जैसा बनने की प्रेरणा देता है।
9. सूक्ष्म रूप धरि सियहिं दिखावा।
विकट रूप धरि लंक जरावा॥
अर्थ:
आपने सूक्ष्म रूप धारण कर सीता माता को दर्शन दिए और विकराल रूप में लंका को जला दिया। आपकी यह शक्ति और सामर्थ्य मुझे हर परिस्थिति में साहस रखने की प्रेरणा देती है।
10. भीम रूप धरि असुर संहारे।
रामचंद्र के काज सवारे॥
अर्थ:
आपने भयंकर रूप धारण कर राक्षसों का संहार किया और श्रीराम के कार्यों को सफलतापूर्वक पूरा किया। आपकी यह निष्ठा मुझे भी अपने कर्तव्यों के प्रति दृढ़ रहने का सबक सिखाती है।
11. लाय सजीवन लखन जियाए।
श्रीरघुबीर हरषि उर लाए॥
अर्थ:
आपने संजीवनी लाकर लक्ष्मणजी के प्राण बचाए। आपकी इस सेवा से श्रीराम ने आपको हर्षित होकर अपने हृदय से लगा लिया। यह दर्शाता है कि सेवा और समर्पण से जीवन में क्या कुछ प्राप्त किया जा सकता है।
12. रघुपति कीन्ही बहुत बड़ाई।
तुम मम प्रिय भरतहि सम भाई॥
अर्थ:
श्रीराम ने आपकी प्रशंसा करते हुए कहा कि आप मेरे भरत जैसे प्रिय भाई हैं। आपका यह समर्पण और भाईचारा मुझे भी अपने रिश्तों को निभाने की प्रेरणा देता है।
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हनुमान चालीसा (चौपाई 13 से 40 तक)
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13. सहस बदन तुम्हरो यश गावे।
अस कहि श्रीपति कंठ लगावे॥
अर्थ:
श्रीराम ने कहा कि हजारों मुखों वाले शेषनाग भी तुम्हारे यश का गान करते हैं। यह कहकर उन्होंने तुम्हें अपने गले से लगा लिया। मैं इस भाव से प्रेरणा लेता हूँ कि सेवा और भक्ति के माध्यम से व्यक्ति सर्वोच्च सम्मान प्राप्त कर सकता है।
14. सनकादिक ब्रह्मादि मुनीसा।
नारद सारद सहित अहीसा॥
अर्थ:
सनकादि ऋषि, ब्रह्मा, नारद, सरस्वती और शेषनाग सब तुम्हारी महिमा का गान करते हैं। यह दिखाता है कि ज्ञान और शक्ति के साथ विनम्रता का महत्व कितना बड़ा है।
15. जम कुबेर दिगपाल जहाँ ते।
कवि कोविद कहि सके कहाँ ते॥
अर्थ:
यमराज, कुबेर और चारों दिशाओं के रक्षक तक तुम्हारी महिमा का वर्णन नहीं कर सकते। मैं इस बात से प्रेरित होता हूँ कि सच्ची महानता का वर्णन शब्दों में नहीं किया जा सकता।
16. तुम उपकार सुग्रीवहिं कीन्हा।
राम मिलाय राजपद दीन्हा॥
अर्थ:
तुमने सुग्रीव की मदद की और उन्हें श्रीराम से मिलवाकर उनका खोया हुआ राज्य वापस दिलाया। मैं इस चौपाई से सिखता हूँ कि दूसरों की सहायता करना सबसे बड़ा धर्म है।
17. तुम्हरो मंत्र विभीषण माना।
लंकेश्वर भए सब जग जाना॥
अर्थ:
विभीषण ने तुम्हारे दिए मंत्र को माना और वे लंका के राजा बने। मैं इस सीख को अपनाता हूँ कि सच्चे परामर्श से बड़ी से बड़ी बाधा दूर की जा सकती है।
18. जुग सहस्त्र जोजन पर भानू।
लील्यो ताहि मधुर फल जानू॥
अर्थ:
तुमने सूर्य को हजारों योजन दूर होते हुए भी मीठा फल समझकर निगल लिया। मैं इससे यह प्रेरणा लेता हूँ कि अदम्य साहस और प्रयास से असंभव को भी संभव बनाया जा सकता है।
19. प्रभु मुद्रिका मेलि मुख माही।
जलधि लांघि गए अचरज नाहीं॥
अर्थ:
श्रीराम की अंगूठी मुँह में रखकर तुमने समुद्र को पार कर लिया। यह दिखाता है कि विश्वास और भक्ति से सभी कठिनाइयों को पार किया जा सकता है।
20. दुर्गम काज जगत के जेते।
सुगम अनुग्रह तुम्हरे तेते॥
अर्थ:
संसार के कठिन से कठिन कार्य तुम्हारी कृपा से सरल हो जाते हैं। मैं इस भाव को जीवन में अपनाता हूँ कि सही मार्गदर्शन से कोई भी कार्य असंभव नहीं है।
21. राम दुआरे तुम रखवारे।
होत न आज्ञा बिनु पैसारे॥
अर्थ:
तुम श्रीराम के द्वार के रक्षक हो और बिना तुम्हारी आज्ञा के कोई प्रवेश नहीं कर सकता। मैं इस चौपाई से यह समझता हूँ कि कर्तव्यपरायणता और जिम्मेदारी का निर्वाह आवश्यक है।
22. सब सुख लहै तुम्हारी शरणा।
तुम रक्षक काहू को डरना॥
अर्थ:
तुम्हारी शरण में आने वाले को सब प्रकार के सुख मिलते हैं और वह निडर हो जाता है। मैं इस विश्वास को अपने जीवन में अपनाने की कोशिश करता हूँ।
23. आपन तेज सम्हारो आपै।
तीनों लोक हांक तें कांपै॥
अर्थ:
तुम अपने तेज को स्वयं नियंत्रित करते हो, और तुम्हारी हुंकार से तीनों लोक काँप उठते हैं। मैं इस आत्मनियंत्रण की शक्ति को जीवन में लागू करना चाहता हूँ।
24. भूत पिशाच निकट नहिं आवै।
महावीर जब नाम सुनावै॥
अर्थ:
महावीर हनुमान का नाम सुनते ही भूत-पिशाच दूर भाग जाते हैं। यह मुझे सिखाता है कि साहस और विश्वास से सभी भय समाप्त किए जा सकते हैं।
25. नासै रोग हरै सब पीरा।
जपत निरंतर हनुमत बीरा॥
अर्थ:
जो लोग निरंतर वीर हनुमान का जाप करते हैं, उनके सभी रोग और पीड़ाएँ नष्ट हो जाती हैं। मैं इस चौपाई से यह सीखता हूँ कि भक्ति और धैर्य से हर कष्ट का समाधान हो सकता है।
26. संकट तें हनुमान छुड़ावै।
मन क्रम वचन ध्यान जो लावै॥
अर्थ:
जो लोग मन, वचन और कर्म से हनुमानजी का ध्यान करते हैं, वे सभी संकटों से मुक्त हो जाते हैं। मैं यह मानता हूँ कि समर्पण से हर समस्या का समाधान मिलता है।
27. सब-पर राम राय-नसरताजा।
तिन के काज सकल तुम साजा॥
अर्थ:
तुमने तपस्वी राजा श्रीराम के सभी कार्यों को सफलतापूर्वक पूरा किया। मैं भी अपनी जिम्मेदारियों को पूरी निष्ठा से निभाने का प्रयास करता हूँ।
28. और मनोरथ जो कोई लावै।
सोई अमित जीवन फल पावै॥
अर्थ:
जो भी तुम्हारे समक्ष अपनी मनोकामना लाता है, वह अनंत जीवन फल प्राप्त करता है। यह मुझे सिखाता है कि भक्ति और श्रृद्धा से इच्छाएँ पूरी होती हैं।
29. चारों जुग परताप तुम्हारा।
है परसिद्ध जगत उजियारा॥
अर्थ:
आपका प्रताप चारों युगों में व्याप्त है, और आपकी महिमा से संसार आलोकित है। यह मुझे प्रेरणा देता है कि सच्चे कार्यों की गूँज समय से परे होती है।
30. साधु संत के तुम रखवारे।
असुर निकंदन राम दुलारे॥
अर्थ:
आप साधु-संतों के रक्षक हैं और असुरों का विनाश करने वाले श्रीराम के प्रिय हैं। मैं भी दूसरों की रक्षा और सहायता का भाव अपनाने का प्रयास करता हूँ।
31. अष्ट सिद्धि नौ निधि के दाता।
अस वर दीन जानकी माता॥
अर्थ:
माता सीता ने तुम्हें अष्ट सिद्धि और नौ निधियों का वरदान दिया है। यह मुझे सिखाता है कि निस्वार्थ सेवा से अपार कृपा प्राप्त होती है।
32. राम रसायन तुम्हरे पासा।
सदा रहो रघुपति के दासा॥
अर्थ:
तुम्हारे पास श्रीराम के नाम का अमृत है, और तुम सदा उनके सेवक हो। यह मुझे सेवा और समर्पण के महत्व को समझने की प्रेरणा देता है।
33. तुम्हरे भजन राम को पावै।
जनम जनम के दुख बिसरावै॥
अर्थ:
तुम्हारे भजन से श्रीराम की प्राप्ति होती है और जन्म-जन्म के दुख मिट जाते हैं। यह मुझे भक्ति और साधना का महत्व समझाता है।
34. अंत काल रघुवर पुर जाई।
जहाँ जन्म हरि भक्त कहाई॥
अर्थ:
अंत समय में हनुमानजी की कृपा से रामलोक की प्राप्ति होती है। मैं यह मानता हूँ कि सच्ची भक्ति से जन्म-मृत्यु के बंधनों से मुक्ति मिलती है।
35. और देवता चित्त न धरई।
हनुमत सेइ सर्ब सुख करई॥
अर्थ:
अन्य देवताओं की उपासना की आवश्यकता नहीं, केवल हनुमानजी की सेवा से ही सभी सुख प्राप्त होते हैं। मैं इसे सच्ची निष्ठा का प्रतीक मानता हूँ।
36. संकट कटै मिटै सब पीरा।
जो सुमिरै हनुमत बलबीरा॥
अर्थ:
जो हनुमानजी का स्मरण करते हैं, उनके सारे संकट और पीड़ाएँ समाप्त हो जाती हैं। यह मुझे जीवन में कठिनाइयों का सामना करने का साहस देता है।
37. जय जय जय हनुमान गोसाईं।
कृपा करहु गुरु देव की नाईं॥
अर्थ:
मैं हनुमानजी की जय बोलते हुए उनसे गुरु के समान कृपा करने की प्रार्थना करता हूँ। यह मुझे सिखाता है कि गुरु और ईश्वर के प्रति समर्पण सर्वोच्च है।
38. यह शत बार पाठ कर जोई।
छूटहि बंदि महा सुख होई॥
अर्थ:
जो हनुमान चालीसा का सौ बार पाठ करता है, उसे बंधनों से मुक्ति और महान आनंद की प्राप्ति होती है। यह भक्ति के महत्व को दर्शाता है।
39. जो यह पढ़ै हनुमान चालीसा।
होय सिद्धि साखी गौरीसा॥
अर्थ:
जो हनुमान चालीसा का पाठ करता है, उसे सफलता प्राप्त होती है, और शिवजी साक्षी हैं। यह सफलता की गारंटी है।
40. तुलसीदास सदा हरि चेरा।
कीजै नाथ हृदय महँ डेरा।।
दोहा
पवन तनय संकट-हरन, मंगल-मूरति-रूप । राम लखन सीता सहित, हृदय बसहु सुर-भूप ।।
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